Tuesday 5 April 2016

Jock

कल रात एक शादी में गया।
वहां, जैसे ही डीजे ने यह गाना बजाया....
'जिसको डांस नहीं करना वो जाकर अपनी भैंस चराए। '
ज्यादातर पति अपनी पत्नी को खाना  खिलाने ले गए। 

Sunday 3 January 2016

संकल्प

     संकल्प और समर्पण। अगर अर्थ की दृस्टि से देखा जाए तो दोनों ही बिरोधाभासी बाते हैं। या तो आप संकल्प कर सकते हैं, या फिर समर्पण। जैसे युद्ध में सामने वाले ने हथियार छोड़ दिए, तो समझो कि समर्पण हो गया। जब तक लड़ रहे थे, तो संकल्प, हरा तो समर्पण किया। लेकिन अध्यात्म में संकल्प और समर्पण साथ-साथ चलते हैं। संकल्प करें और ईश्वर से कहें कि वह मेरे संकल्प को पूरा करे।
     संकल्प की शक्ति का बीज सबमे होता है। लेकिन, अगर आप बीज को मिट्टी में डालेंगे नहीं, उसको खाद पानी न देंगे तो वह फूटेगा ही नहीं।  बड़े-बड़े संकल्प न करें कि "मोक्ष पाएंगे, ब्रह्मज्ञान पाएंगे, समाधी पाएंगे। छोटे-छोटे संकल्प करें। जैसे एक प्रेमी और प्रेमिका एक बगीचे में बैठे थे। प्रेमिका ने प्रेमी से कहा, "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?" प्रेमी बोला "तुम्ही बताओ, चाँद लाऊँ, तारे लाऊँ।" प्रेमिका बोली, "इतनी बड़ी बातें मत करो, तुम इतना ही बोल दो कि गोभी का फूल लाऊंगा, तू रोटी पकाएगी, मैं खाऊंगा। ब्यवहारिक बातें करें।
     छोटे-छोटे कदम उठाएंगे, तो हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाएगी। यह मत कहें कि हजारों मील चलना है, पर मुझमे शक्ति नहीं है। घबराएं मत, हजारो मील नहीं, तो एक कदम तो चल ही सकते हैं। एक-एक कदम ही चलें। संकल्प की शक्ति का विकाश करने के लिए छोटे-छोटे प्रयोग करें। जैसे हम अन्न नहीं खाएंगे। दो-चार घंटे बहुत लम्बा है, आप छोटा समय लें। घड़ी देखिये और संकल्प करें कि, 'अगले आधे घंटे तक मैं मौन रहूँगा। अगर आधा घंटा आप मौन रह गए तो समझ लो कि उतनी शक्ति संकल्प की बढ़ गयी। फिर इसी तरह धीरे धीरे बढ़ाते रहो। संकल्प की शक्ति को विकसित करने के लिए छोटे-छोटे उपाय करें। जैसे आप सुबह नहीं उठ पते हैं, तब रात को सोने से पहले अलार्म लगा दें। फिर प्रार्थना भी करें, "प्रभु, सुबह पांच बजे उठा देना।" घड़ी अलार्म बजाना भूल सकती है, पर आपके अंदर का अलार्म ठीक समय पर बज जायेगा। आप संकल्प शक्ति का उपयोग सही तरीके से कर नहीं रहे हैं। आप कहते हैं कि सुबह उठूँ और आपका "मैं" कहता है कि "आज" सो जाता हूँ, कल उठ जाऊंगा। संकल्प में दृढ़ता होनी चाहिए।

-आनंद मूर्ति गुरु माँ 

Monday 12 October 2015

ऐ शौक न समझ ये आशिकी भी क्या चीज है।
ख़फ़ा का हुनर सिख लेना वफ़ा करने से पहले।।  -धीरज चौहान

मृत्यु का डर कैसा !

एक मछुआरा समुद्र में मछलियाँ पकड़ता था और अपनी जीविका अर्जित करता था। एक दिन उसके ब्यापारी मित्र ने पूछा 'मित्र, तुम्हारे पिता हैं?
मछुआरा बोला, 'नहीं, उन्हें समुद्र की एक मछली निगल गई।' ब्यापारी ने पूछा, 'और तुम्हारा भाई?' मछुआरे ने उत्तर दिया, 'नौका डूब जाने के कारण वह समुद्र की गोद में समा गया। ' ब्यापारी ने दादाजी और चाचाजी के सम्बन्ध में पूछा तो वे भी समुद्र में ही लीन हो गए थे।
ब्यापारी ने कहा, 'मित्र, यह समुद्र तुम्हारे परिवार के विनाश का कारण है, इस बात को जानते हुए भी तुम यहाँ बराबर आते हो? क्या तुम्हें मरने का डर नहीं है ?' मछुआरा बोला, 'भाई, मौत का डर किसी की हो या न हो,  पर वह तो आएगी ही। तुम्हारे घर वालों में से शायद इस समुद्र तक कोई नहीं आया होगा, फिर भी वे सब कैसे चले गए? मौत कब आती है और कैसे आती है, यह आज तक कोई भी नहीं समझ पाया। फिर मैं बेकार क्यों डरूं?
मछुआरे की बात सुन कर ब्यापारी के कानो में भगवान महाबीर की वाणी गूंजने लगी- 'मृत्यु का आगमन किसी भी द्वार से हो सकती है। '
वज्र से बने मकान में रह कर भी ब्यक्ति मौत की पकड़ से नहीं बच सकता, इसलिए केवल वर्तमान में जीने वाला ब्यक्ति ही मौत के भय से ऊपर उठ सकता है।
-आचार्य तुलसी

Saturday 8 August 2015

आपकी इस सहयोग के लिए धन्यवाद

आपकी इस सहयोग के लिए धन्यवाद 

       गर्मी की तपिश और लोगों के शरीर से बह रहे पसीने की सड़ी हुई सी बदबू के साथ स्टेशन परिसर की महक कुछ ज्यादा ही लोगो को अपनेपन का एह्शास करा रही है। केसरिया रंग का भगवा वस्त्र धारण किये एक महात्मा जी वहीँ पास में बैठ कर भोजन कर रहें हैं। उस पोलिथिन को जिसमे कुछ रोटी है , ऊपर से आधी मोड़कर कटोरे का आकर दे दी है उन्होंने। सब्जी वाले पोलिथिन को भी इसी तरह मोड़कर एक छोटी कटोरी का रूप दे दिया गया है। मक्खियाँ भी इस दावत के मजे ले रही हैं। रह-रहकर कुछ मक्खियाँ उड़कर दूर चली जा रही हैं। उसके साथी, सगे-सम्बन्धी कहीं छूट न जाएँ। कुछ मक्खियाँ खाने के साथ चटनी-आचार व किसी जायके का स्वाद लेने के लिए रेल की पटरियों पर बिखरे पड़े रसीले मल का इस्तेमाल कर रही  हैं।  उनके पानी के लिए महात्मा जी के ललाट से निकल रहे पसीने की मात्रा ही काफी है। महात्मा जी अब अपने हाथ हिलाना बंद कर दिए हैं। सायद हिलाते-हिलाते उनके हाथ थक गए हों या फिर हो सकता है भूखी मक्खियों पर अपनी दया लूटा रहे हों। महात्मा जी रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े कर सब्जी के साथ इस तरह खा रहे हैं मानो अपनी लम्बी सी मुछ और दाढ़ी के बीच कुछ छुपा रहे हों। कभी-कभी बीच-बीच में अपनी श्यामवर्ण नमकीन अँगुलियों को चूस लिया करते हैं। ट्रेनों के आवागमन से उड़ने वाली पटरियों के धुल भोजन को और भी स्वादिस्ट बना रहे हैं। 
         बैठने के लिए उस प्लेटफार्म पर बेंच नहीं है। फिर भी यात्रियों में सन्तुस्टी है कि कम से कम खड़े रहने के लिए प्लेटफार्म तो है। क्या हो जायेगा यदि घंटे आधे खड़े रहेंगे? फिर घर पहुँचकर आराम ही तो करना है। प्लेटफार्म के बीच में इस छोर से उस छोर तक बिस्कुट, नमकीन, चाय और कोल्ड्रिंक के दुकानों की लम्बी कतार है। कहीं थोड़ी जगह बची है तो वहां भी खीरे-ककड़ी और मूंगफली वाले अपनी टोकरी जमा रखें हैं। हाँ, रेलवे वालों ने प्लेटफार्म पर दो-चार पीपल और पाकड़ के बृक्ष लगा कर यात्रियों पर एहसान जरूर किया है। कुछ उन पेड़ो के छाँव में खड़े हैं तो कुछ दुकान के दिवार से आ रहे दो फिट परछाई से सटे बुत बने  हैं।
          ऊपर हार्वेस्टर वाली छत से एक बोर्ड लटक रहा है। लिखा है "स्टेशन को साफ और स्वच्छ रखने में हमे सहयोग करें।" उसी बोर्ड के निचे एक डस्टबिन है जो भर चूका है और उस पर मक्खियाँ खूब मजे से नृत्य कर रही हैं। केले और आम के छिलके से निकलने वाली खुशबू भी दूर उड़ रही मक्खियों को निमंत्रित करने में अहम भूमिका निभा रही है। डस्टबिन में अब और जगह नहीं है। लोग केले-आम के छिलके, बिस्कुट निगल कर उसकी प्लास्टिक, चाय की प्याली और पानी की बोतलें वहीँ निचे संजोते जा रहे हैं।
         और करें भी क्या? हो सकता है लोग कुछ और करें यदि हार्वेस्टर वाली छत से लटके हुए बोर्ड पर लिखा होता "केले-आम के छिलके, बिस्कुट खाकर उसके प्लास्टिक और चाय पीकर प्याली अपने साथ ले जाएँ। आपकी इस सहयोग के लिए धन्यवाद।"
        मुगलसराय, यानि मुगलो का सराय। मतलब यहाँ पान वगैरह भी मुग़ल शासन के लोग ही खा सकते थे। इसलिए यदि आपमें स्टेशन परिसर को साफ व स्वच्छ रखने की भावना है और पान-तम्बाकू खाने की आदत से मजबूर हैं तो उसकी पिक अपनी जेब में उगिलते जाइये। धन्यवाद। 

-धीरज चौहान

Monday 11 May 2015

Revenge

यदि आपको किसी से बदला लेना हो और उसे पिटने का मन कर रहा हो लेकिन वो आपसे अधिक ताकतवर है ये सोच आप डरते हैं तो इसका एक बेहतरीन उपाय है.…
जब किसी दिन उसके साथ सोने का मौका मिल जाये तो साथ सोइये
फिर आधी रात को जाग कर आप जितनी जोर से एक लात या एक लाफ़ा मार सकते हैं मारिये
फिर करवट लेने के अंदाज़ में अपना हाथ या पैर उसी के ऊपर रहने दीजिये।
यकीन मानिये उसे कितना भी अधिक चोट क्यों न लगे, वो आपको कुछ नहीं कर सकता।
-धीरज चौहान 

Saturday 2 May 2015

केवल एक वही है जो पागल नहीं है !

केवल एक वही है जो पागल नहीं है !

दो दिन पहले अच्छी-खासी बारिश हुई थी। ढ़ेर सारे प्लास्टिक और कचड़े नाले के मुह और सड़क पर फैले थे। वह उन्हीं सब को घूम-घूम कर चुन रहा था और एक जगह इकठ्ठा किये जा रहा था। एक झलक देखा फिर दुकान पर आकर मैंने दुकानदार को एक चाय के लिए आर्डर दे दी। थोड़ी देर में वह ब्यक्ति आया। उसने दुकानदार को दो सिक्के बढ़ाये। एक माचिस व एक सिगरेट की फरमाइश की।
"सिगरेट नहीं है" यह कह दुकानदार उसके पैसे वापस करने लगा।
"ठीक है, तो फिर एक माचिस दे दो।" कहते हुए एक सिक्का उसने अपने जेब में रख ली। वापस आकर उसने इकट्ठे किये हुए कचड़े में आग लगा दी। थोड़ी देर वह वहीँ रूका रहा। फिर कुछ बोल-बालकर जाने लगा। तब तक मेरी चाय ख़त्म हो चुकी थी। मैं भी उसके पीछे बढ़ गया।
क्या वो पागल था? सायद हो भी सकता है ! या फिर यह भी हो सकता है कि केवल एक वही था जो पागल नहीं था। अपने आप को फटे-पुराने कपडे के चिथड़ों में समाये, नंगे पांव चल रहा था। उसे किसी से डर नहीं था और न जरा भी संकोच थी। लगातार बातें कर रहा था।
"आपके ऑफिस में इतने सारे स्टाफ हैं। किसी ने आपको इस बारे में बताया नहीं?"
"जब आपको पता है तो फिर चुप क्यों रहते हैं। कुछ करते क्यों नहीं ? कुछ करना चाहिए आपको। "
"आप नहीं तो और कौन करेगा?"
"ज्यादा बोलिए मत।"
"इतने सारे लोगों में आपको चुना गया है।"
"गर्ग साहब के बारे में मालुम हुआ कि  नहीं आपको?"
"हाँ, हमहीं कहे थे उसको बताने के लिए। उनका शरीर देखा था आपने ? बेचारा खांसते-खांसते मर गया।"
"ऊपर वाले के हाथ में सब कैसे है?"
"वो गैरेज वाला जिम्मेवार नहीं है। दिन-रात डीजल का धुआं उनके घर में आता था।"
"कल जवाब दे दिया डॉक्टर, और क्या?"
"ये देखिये, कबका भर गया है। कचड़े बाहर उड़ रहे हैं।" (सड़क के किनारे रखे डस्टबीन के तरफ इशारा करते हुए)
"क्या देखते हैं, देखते हैं! आपसे कुछ नहीं होगा।"
"और कीजिये निकम्मों को बहाल।"
"पूरा का पूरा मुंसिपल्टी गंदगी से भरा है, तो संभावना ही नहीं बनती इधर की गंदगी साफ होने की।"
"एक बात पता है कि नहीं आपको?"
"ये जो नए साहबजादे को आपने यहाँ ट्रांसफर किया है! ये भी कम नहीं है।"
"क्या? क्या हुआ। आप खुद ही आकर देख लीजिये।"
"फाइल में पेपर रहे न रहे, नोट रहना चाहिए।" (दो अंगुलियों को आपस में घिस कर चुटकी बजाते हुए)।
मुझे लगा वो किसी बहुत बड़े अफसर या फिर सीधे सरकार से बाते कर रहा है। मेरे घर के तरफ जाने वाली सड़क का मोड़ पास आने वाला था। मैंने अपने कदमो को तेज किया ताकि मुड़ने से पहले यह जान लूँ कि वह किससे बाते कर रहा है? उसके कान में हैडफ़ोन या ब्लूटूथ तो नहीं है। क्योंकि उसके हाथ न कान के पास थे और न हाथ में कोई मोबाइल था। बायें हाथ में एक सफ़ेद प्लास्टिक झूल रहा था जिसमे एक लिट्टी, रोटी के कुछ टुकड़े, समोसे के साथ मिलने वाली पिली चटनी और सफ़ेद गोल कोई चीज दिख रहा था। सम्भवतः वह प्याज या फिर मूली के टुकड़े होंगे। दाहिने हाथ से अपने बातों को समझाने के लिए इशारे किये जा रहा था। मोड़ आने पर वह एक क्षण रुका, फिर एक बार सामने फिर अपने बाईं तरफ अँगुलियों से इशारा किया। फिर एकाएक वह सीधे चला गया। और मैं अपने घर के तरफ मूड गया।

-धीरज चौहान