…. …. …. शबब …. …. ….
हर शुबह
हर शाम
होता है एक नाम
मेरी हथेलियों पर
कुछ उल्टा
कुछ सीधा
कि कोई
पढ़ न ले
पर पता है मुझे
वो तुम्हारे ही तो हैं !
क्यों कि मैं जनता हूँ
और बस मैं जनता हूँ
क्यों कि मेरे ही तो
लिखे होते हैं वो
यूहीं बेमन्न से
उलझकर तेरी यादों से
जब कभी फीके पड़ जाये
लिखा तेरा नाम
मेरे हथेलियों पे
बस उठाता हूँ कलम
और दुहरा देता हूँ उसे
एक बार फिर
देर तक दिखने के लिए
जिसे बस मैं जनता हूँ,
शबब तो हैं कई इसके
पर हर शय याद
तेरी आये
'शबब'
यही एक खाश है
----चौहान
हर शुबह
हर शाम
होता है एक नाम
मेरी हथेलियों पर
कुछ उल्टा
कुछ सीधा
कि कोई
पढ़ न ले
पर पता है मुझे
वो तुम्हारे ही तो हैं !
क्यों कि मैं जनता हूँ
और बस मैं जनता हूँ
क्यों कि मेरे ही तो
लिखे होते हैं वो
यूहीं बेमन्न से
उलझकर तेरी यादों से
जब कभी फीके पड़ जाये
लिखा तेरा नाम
मेरे हथेलियों पे
बस उठाता हूँ कलम
और दुहरा देता हूँ उसे
एक बार फिर
देर तक दिखने के लिए
जिसे बस मैं जनता हूँ,
शबब तो हैं कई इसके
पर हर शय याद
तेरी आये
'शबब'
यही एक खाश है
----चौहान