Sunday 3 January 2016

संकल्प

     संकल्प और समर्पण। अगर अर्थ की दृस्टि से देखा जाए तो दोनों ही बिरोधाभासी बाते हैं। या तो आप संकल्प कर सकते हैं, या फिर समर्पण। जैसे युद्ध में सामने वाले ने हथियार छोड़ दिए, तो समझो कि समर्पण हो गया। जब तक लड़ रहे थे, तो संकल्प, हरा तो समर्पण किया। लेकिन अध्यात्म में संकल्प और समर्पण साथ-साथ चलते हैं। संकल्प करें और ईश्वर से कहें कि वह मेरे संकल्प को पूरा करे।
     संकल्प की शक्ति का बीज सबमे होता है। लेकिन, अगर आप बीज को मिट्टी में डालेंगे नहीं, उसको खाद पानी न देंगे तो वह फूटेगा ही नहीं।  बड़े-बड़े संकल्प न करें कि "मोक्ष पाएंगे, ब्रह्मज्ञान पाएंगे, समाधी पाएंगे। छोटे-छोटे संकल्प करें। जैसे एक प्रेमी और प्रेमिका एक बगीचे में बैठे थे। प्रेमिका ने प्रेमी से कहा, "तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?" प्रेमी बोला "तुम्ही बताओ, चाँद लाऊँ, तारे लाऊँ।" प्रेमिका बोली, "इतनी बड़ी बातें मत करो, तुम इतना ही बोल दो कि गोभी का फूल लाऊंगा, तू रोटी पकाएगी, मैं खाऊंगा। ब्यवहारिक बातें करें।
     छोटे-छोटे कदम उठाएंगे, तो हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाएगी। यह मत कहें कि हजारों मील चलना है, पर मुझमे शक्ति नहीं है। घबराएं मत, हजारो मील नहीं, तो एक कदम तो चल ही सकते हैं। एक-एक कदम ही चलें। संकल्प की शक्ति का विकाश करने के लिए छोटे-छोटे प्रयोग करें। जैसे हम अन्न नहीं खाएंगे। दो-चार घंटे बहुत लम्बा है, आप छोटा समय लें। घड़ी देखिये और संकल्प करें कि, 'अगले आधे घंटे तक मैं मौन रहूँगा। अगर आधा घंटा आप मौन रह गए तो समझ लो कि उतनी शक्ति संकल्प की बढ़ गयी। फिर इसी तरह धीरे धीरे बढ़ाते रहो। संकल्प की शक्ति को विकसित करने के लिए छोटे-छोटे उपाय करें। जैसे आप सुबह नहीं उठ पते हैं, तब रात को सोने से पहले अलार्म लगा दें। फिर प्रार्थना भी करें, "प्रभु, सुबह पांच बजे उठा देना।" घड़ी अलार्म बजाना भूल सकती है, पर आपके अंदर का अलार्म ठीक समय पर बज जायेगा। आप संकल्प शक्ति का उपयोग सही तरीके से कर नहीं रहे हैं। आप कहते हैं कि सुबह उठूँ और आपका "मैं" कहता है कि "आज" सो जाता हूँ, कल उठ जाऊंगा। संकल्प में दृढ़ता होनी चाहिए।

-आनंद मूर्ति गुरु माँ