Tuesday 15 July 2014

कंजूसी का परिणाम

एक गरीब ब्राह्मण था। उसको अपनी कन्या का विवाह  करना था। उसने विचार किया की कथा करने से कुछ पैसा आ जायेगा तो काम चल जायेगा। ऐसा विचार करके उसने भगवान राम के एक मंदिर में बैठ कर कथा आरम्भ कर दी। उसका भाव यह था की कोई श्रोता आये, चाहे न आये, पर भगवान तो मेरी कथा सुनेंगे ही।
ब्राह्मण की कथा में थोड़े-से श्रोता आने लगे। एक कंजूस सेठ था। एक दिन वह मंदिर में आया। जब वह मंदिर की परिक्रमा कर रहा था, तब उसको मंदिर के भीतर से कुछ आवाज़ आयी। ऐसा लगा की कोई दो ब्यक्ति आपस में बात कर रहे हैं। सेठ ने कान लगाकर सुना। भगवान राम हनुमान जी से कह रहे थे कि 'इस ब्राह्मण के लिए सौ रुपयों का प्रबन्ध कर देना, जिससे कन्यादान ठीक से हो जाये। हनुमान जी ने कहा की ठीक है भगवन। इसके सौ रूपये पैदा हो जायेंगे।
सेठ ने यह सुना तो वे कथा समाप्ति के बाद ब्राह्मण से मिले और उनसे पूछा कि 'महाराज, कथा में रूपये पैदा हो रहे हैं कि नहीं ? ब्राह्मण बोले 'श्रोतागण बहुत काम आते हैं, रूपये कैसे पैदा हो? सेठ ने कहा कि मेरी एक शर्त है, कथा में जितना रुपया आये, वह मेरे को दे देना, मैं आपको पचास रूपये दे दूंगा। ब्राह्मण ने सर्त स्वीकार कर ली। उसने सोच की कथा में इतने रूपये तो आएंगे नहीं , पर सेठ से पचास रूपये तो मिल ही जायेंगे। पुराने ज़माने में पचास रूपये भी बहुत ज्यादा होते थे। इधर सेठ की नियत यह थी की हनुमान जी भगवान की आज्ञा का पालन करके इसको सौ रूपये जरूर दिलाएंगे। वे सौ रूपये मुझे मिल जायेंगे और पचास रूपये मैं दे दूंगा तो बाकि पचास रूपये मुझे फ़ायदा होगा। जो लोभी आदमी होते हैं वो सदा रुपयों की बात सोचते हैं। इसलिए भगवान और हनुमान जी की बातें सुनकर भी सेठ में भगवान के प्रति भक्ति उत्पन्न नहीं हुई, उलटे उसने लोभ को ही पकड़ा।
कथा की पूर्णाहुति होने पर सेठ ब्राह्मण जी के पास आया। उसको आशा थी की आज सौ रूपये भेंट में आये होंगे। ब्राह्मण ने कहा भाई, आज भेंट तो बहुत थोड़ी ही आयी ! बस, पांच-सात रूपये आये हैं। सेठ बेचारा क्या करे? उसने अपने वायदे के अनुसार ब्राह्मण को पचास रूपये दे दिए। लेने के बादले देने पड़ गए। सेठ को हनुमान जी पर बहुत गुस्सा आया की उन्होंने ब्राह्मण को सौ रूपये नहीं दिए  भगवान के सामने झूठ बोला। मंदिर में गया और हनुमान जी की मूर्ति पर घुसा मारा। घुसा मरते ही सेठ का हाथ मूर्ति से चिपक गया। अब सेठ ने बहुत जोर लगाया, पर हाथ छूटा नहीं। जिसको हनुमान जी पकड़ लें, वह कैसे छूट सकता है। सेठ को फिर आवाज़ सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना। भगवान हनुमान जी से पूछ रहे थे की तुमने ब्राह्मण को सौ रूपये दिलाये की नहीं? हनुमान जी ने कहा कि 'भगवन ! पचास रूपये तो दिला दिए हैं, बाकि के पचास रूपये के लिए सेठ को पकड़ रखा है। वह पचास रूपये देगा तो छोड़ देंगे।' सेठ ने सुना तो विचार किया की मंदिर में लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेइज्जती होगी। वह चिल्लाकर बोला कि 'हनुमान जी महाराज। मुझे छोड़ दो, मैं पचास रूपये दूंगा। '
हनुमान जी ने सेठ का हाथ छोड़ दिया। सेठ ने जाकर ब्राह्मण को पचास रूपये दे दिए। 

Thursday 10 July 2014

किस्मत

जो आप चाहते हैं, यदि वो आपको नहीं मिलता है तो जो आपको मिला है उसके साथ खुश रहिये। क्योंकि ईश्वर आपके लिए क्या सोच रखा है आप नहीं जानते।