Monday 21 January 2013

You Are in Love (Peom)


आतंक (Poem)

आतंक 

कुछ तो है
जिसे पाने की
एक होड़ है,

कुछ तो है
जिसे हासिल करने की 
प्रयास है निरंतर ,
नहीं देखा है कोई 
की वो कैसा है?
और है क्या वो,
सायद ये भी नहीं 
जनता कोई,
फिर भी एक चाह है 
एक तमन्ना है 
उसे पा लेने की,
कुछ तो है 
एक दिवार के 
उस पार 
जिस तरफ से एक मौन हुई 
सद्दा पुकार रही है 
हर किसी को हर शय,
है कितना सही 
ये किसी को पता नहीं , 
है कितना गलत 
ये  सब जानते हैं,
क्यों की ये आतंक है 
इसमें सब पिलते हैं।।



-- धीरज चौहान ''धैर्य'"

....तो तुम मिले (Poem)



....तो तुम मिले।


राह-ए-जिन्दगी में
यूँ अकेले ही चले थे,
तब तलाश थी
एक हमसफ़र की
                                  ....तो तुम मिले।

डूबता ही जा रहा था
ये दिल
अपनों की चाहत में ,
जब धडकनों ने किया याद
एक अजनबी को

                                  ....तो तुम मिले।

न ख़त्म हो 
सिलसिला खाबों का ,
जो इस उम्मीद के साथ 
सपनों ने 
एक करवट ली 
                                  ....तो तुम मिले।


Saturday 19 January 2013

क्या हुआ (Poem)



क्या हुआ 

क्या हुआ
तुम मिलो न मिलो
उम्र भर के लिए,
दिल तो खाली रहेगा
हमेसा,
तुम्हारी यादों को
छुपाने के लिए

क्या हुआ
जो न होगी कभी स्पर्स
तुम्हारी हाथों का
मेरे हाथों पर,
एक इंतजार तो रहेगी
मेरी बाहों का
सदा के लिए

क्या हुआ
न आओगी कभी तुम
मेरी सोते ख्वाब को जगाने,
हर ख्वाबों में ही सही
होगा तुम्हारा साथ
तन्हा रातों के लिए

क्या हुआ
न सुनूंगा कभी
तेरी हंसी मिली बातों को,
इन हवाओं की
सरसराहट ही काफी होगी
तड़पते दिल को
बहलाने के लिए

क्या हुआ
जिन्दगी की इस सफ़र में
मेरी हमसफ़र
न बन पाओगी तुम,
एक उम्मीद तो है
और इंतज़ार
अगले जिन्दगी के लिए ।       _चौहान

Wednesday 16 January 2013

ग़ज़ल



ग़ज़ल 

आपकी आँखों के अश्क ये कहते हैं 
आप मेरे दिल में हम आपके दिल में रहते हैं 

जुल्फों की सरकन बताते हैं मुझको 
की मुझे खुद में समेटने को संवारते हैं 

कब तक छुपायेंगे दिल की बातें दिल में 
कब आएगा ओ वक़्त सपर के हम भी देखते हैं 

दिन ढल जाता है सारा बैठे उनको किनारों पर 
न तूफां ही बहलाता है न लहर ही उन्हें भाते हैं 

लगता है मैं परछाई में भी उन्हें दीखता हूँ 
जब वो हंसकर आईने से बातें करते हैं 

'चौहान'  तेरे आने की कैसे खबर होती है उनको 
की राहों  पर नज़र और होठों पे दुआ रखते हैं।।

बहुत दूर (Poem)

बहुत दूर 

ये सोच कर
उठा था तेरे दर से
की थाम लोगी हाथ
फिर रोक लोगी मुझे
एक आवाज़ देकर
मैं बढ़ता गया युहीं
आहिस्ता-आहिस्ता लगातार
पर न उठे तेरे हाथ
थामने के लिए
मेरे हाथों को
और न ही तेरे लब
मैं बस बढ़ता ही गया
इक इंतज़ार लेकर
तेरे उठते हाथ का
तेरे आवाज़ का
और अंततः
न हुई कोई आहट
पीछे आते किसी क़दमों के
और न आई कोई आवाज़
और इस तरह
मैं दूर हो चूका था
बहुत दूर
तुमसे और
तेरी आवाज़ से !!!     --चौहान (19-01-2006)

मैं लिखूंगा (Poem)


मैं लिखूंगा 

तेरे साथ बीते
हर पल को
हर लम्हों को
जिसमें तुम्हारी मौजूदगी थी
मैं लिखूंगा
भले ही मेरा नाम बदलकर
रख दे दुनियां
पागल मुझे
फिर भी
मैं लिखूंगा
हर अहसास को
हर अनुभव को
जिसमे बस तुम्हें
और सिर्फ तुम्हें ही
मैंने महसूस किया
मैं लिखूंगा
तेरे सब्दों को
अपने कलामों में
अपने कहानियों में
अपने ग़ज़ल के
हर पंक्तियों में
मैं लिखूंगा
तेरी तारीफों को
तेरी मसुमिअत को
मैं लिखूंगा             ----चौहान '10-03-2006