Monday 11 May 2015

Revenge

यदि आपको किसी से बदला लेना हो और उसे पिटने का मन कर रहा हो लेकिन वो आपसे अधिक ताकतवर है ये सोच आप डरते हैं तो इसका एक बेहतरीन उपाय है.…
जब किसी दिन उसके साथ सोने का मौका मिल जाये तो साथ सोइये
फिर आधी रात को जाग कर आप जितनी जोर से एक लात या एक लाफ़ा मार सकते हैं मारिये
फिर करवट लेने के अंदाज़ में अपना हाथ या पैर उसी के ऊपर रहने दीजिये।
यकीन मानिये उसे कितना भी अधिक चोट क्यों न लगे, वो आपको कुछ नहीं कर सकता।
-धीरज चौहान 

Saturday 2 May 2015

केवल एक वही है जो पागल नहीं है !

केवल एक वही है जो पागल नहीं है !

दो दिन पहले अच्छी-खासी बारिश हुई थी। ढ़ेर सारे प्लास्टिक और कचड़े नाले के मुह और सड़क पर फैले थे। वह उन्हीं सब को घूम-घूम कर चुन रहा था और एक जगह इकठ्ठा किये जा रहा था। एक झलक देखा फिर दुकान पर आकर मैंने दुकानदार को एक चाय के लिए आर्डर दे दी। थोड़ी देर में वह ब्यक्ति आया। उसने दुकानदार को दो सिक्के बढ़ाये। एक माचिस व एक सिगरेट की फरमाइश की।
"सिगरेट नहीं है" यह कह दुकानदार उसके पैसे वापस करने लगा।
"ठीक है, तो फिर एक माचिस दे दो।" कहते हुए एक सिक्का उसने अपने जेब में रख ली। वापस आकर उसने इकट्ठे किये हुए कचड़े में आग लगा दी। थोड़ी देर वह वहीँ रूका रहा। फिर कुछ बोल-बालकर जाने लगा। तब तक मेरी चाय ख़त्म हो चुकी थी। मैं भी उसके पीछे बढ़ गया।
क्या वो पागल था? सायद हो भी सकता है ! या फिर यह भी हो सकता है कि केवल एक वही था जो पागल नहीं था। अपने आप को फटे-पुराने कपडे के चिथड़ों में समाये, नंगे पांव चल रहा था। उसे किसी से डर नहीं था और न जरा भी संकोच थी। लगातार बातें कर रहा था।
"आपके ऑफिस में इतने सारे स्टाफ हैं। किसी ने आपको इस बारे में बताया नहीं?"
"जब आपको पता है तो फिर चुप क्यों रहते हैं। कुछ करते क्यों नहीं ? कुछ करना चाहिए आपको। "
"आप नहीं तो और कौन करेगा?"
"ज्यादा बोलिए मत।"
"इतने सारे लोगों में आपको चुना गया है।"
"गर्ग साहब के बारे में मालुम हुआ कि  नहीं आपको?"
"हाँ, हमहीं कहे थे उसको बताने के लिए। उनका शरीर देखा था आपने ? बेचारा खांसते-खांसते मर गया।"
"ऊपर वाले के हाथ में सब कैसे है?"
"वो गैरेज वाला जिम्मेवार नहीं है। दिन-रात डीजल का धुआं उनके घर में आता था।"
"कल जवाब दे दिया डॉक्टर, और क्या?"
"ये देखिये, कबका भर गया है। कचड़े बाहर उड़ रहे हैं।" (सड़क के किनारे रखे डस्टबीन के तरफ इशारा करते हुए)
"क्या देखते हैं, देखते हैं! आपसे कुछ नहीं होगा।"
"और कीजिये निकम्मों को बहाल।"
"पूरा का पूरा मुंसिपल्टी गंदगी से भरा है, तो संभावना ही नहीं बनती इधर की गंदगी साफ होने की।"
"एक बात पता है कि नहीं आपको?"
"ये जो नए साहबजादे को आपने यहाँ ट्रांसफर किया है! ये भी कम नहीं है।"
"क्या? क्या हुआ। आप खुद ही आकर देख लीजिये।"
"फाइल में पेपर रहे न रहे, नोट रहना चाहिए।" (दो अंगुलियों को आपस में घिस कर चुटकी बजाते हुए)।
मुझे लगा वो किसी बहुत बड़े अफसर या फिर सीधे सरकार से बाते कर रहा है। मेरे घर के तरफ जाने वाली सड़क का मोड़ पास आने वाला था। मैंने अपने कदमो को तेज किया ताकि मुड़ने से पहले यह जान लूँ कि वह किससे बाते कर रहा है? उसके कान में हैडफ़ोन या ब्लूटूथ तो नहीं है। क्योंकि उसके हाथ न कान के पास थे और न हाथ में कोई मोबाइल था। बायें हाथ में एक सफ़ेद प्लास्टिक झूल रहा था जिसमे एक लिट्टी, रोटी के कुछ टुकड़े, समोसे के साथ मिलने वाली पिली चटनी और सफ़ेद गोल कोई चीज दिख रहा था। सम्भवतः वह प्याज या फिर मूली के टुकड़े होंगे। दाहिने हाथ से अपने बातों को समझाने के लिए इशारे किये जा रहा था। मोड़ आने पर वह एक क्षण रुका, फिर एक बार सामने फिर अपने बाईं तरफ अँगुलियों से इशारा किया। फिर एकाएक वह सीधे चला गया। और मैं अपने घर के तरफ मूड गया।

-धीरज चौहान