Tuesday 29 April 2014

Sad Love Shayeri

*  कोई दूर रहकर भी कितना करीब होता है,
    मिलना न मिलना अपना नशीब होता है,
    सपने लाख देख लिये तो क्या होता है ,
    पाता वही है जो खुशनशीब होता है ।

*  सिसकियाँ आएँगी पर रो नहीँ पायगी,
    आंसू बहेंगी पर धो नहीं पाओगी,
    माना की तेरी यादों मे हम रातें गुजार लेंगें,
    पर तुम भी चैन से सो नहीं पाओगी। 

*  न था कोई ख़्वाब न  कोई सपना था ,
    इस कदर प्यार करने वाला न कोई अपना था,
    क्यों खुद रोयी और रुलायी मुझे, 
    कभी तो कह दो दिल से जो बात पहले तुमसे सुना था।

*  तू हर शुबह याद आये 
    हर शाम याद आये। 
    पर आज ऐसे याद आये 
    कि मेरी आँख भर आये।

*  इन आँखों को आज भी इंतज़ार है,
    इस जुबां को आज भी इकरार है,
    क्या हुआ कि हमारे रास्ते अलग हैं ऐ दोस्त,
    इस दिल को आज भी तुमपे ऐतबार है। 

*  जहाँ भी जाओगी एक आभास पाओगी,
    टूटे हुये सपनों की एक एह्सास पाओगी,
    तेरे हर कदम पे होगी दुनिया सारी ,
    पर जब कोई न होगा तब हमें पास पाओगी। 

*  ऐ खुदा इतनी तन्हाई ना दे,
    उसे करीब लाकर इतनी जुदाई ना दे,
    यादें गुम न हो जाये दिल किसी कोने मे,
    दुआ है इस दिल मे इतनी गहराई ना दे।

*  आधे अधूरे सपने बस मुझे ढूंढेगी,
    यादों की सिसकियाँ बस मुझे ढूंढेगी, 
    बेसक कोई देगा तुम्हें दुनिया भर की चाहत,
    पर हर बार उठती तेरी पलके पहले मुझे ढूंढेगी। 

*  वो पास भी है और दूर भी,
    जिंदगी खुश भी है और मजबूर भी,
    क्यों हंसी आती है जख्म खाकर भी,
    जबकि जीने के लिए रश्म भी है और दस्तुर भी। 

*  कुछ सुन लेते तो अच्छा था,
    कुछ कह लेते तो अच्छा था,
    माना मेरे आशियाने जल जाएँगे एक दिन 
    कुछ पल ठहर लेते तो अच्छा था। 

*  चाह कर भी तुमसे दूर जा न सकेंगे,
    दिल में चाहत होगी पर ज़ुबां खुल न सकेँगे,
    मौत तो आ जायेगी किसी न किसी दिन,
    पर मर कर भी तुम्हें भूल न सकेंगे।

*  तुमसे दूर जाने की सोचा नहीं है,
    दिल किसी और से लगाने की सोचा नहीं है,
    फिर भी हद से ज्यादा ऐतबार न करना मुझपर,
    यहाँ तो जिंदगी का भी भरोसा नहीं है।

*  है खौफ इतना कि जल न जये...
    मेरे आशियाने एक दिन,
    देखा है मैने बेददे-इश्क़
    इसलिए गर्दिशे-गुदाम करता हूँ।
    






















Saturday 26 April 2014

Just your 5 minutes will decide your 5 years

दोस्तों, जिन्होने मतदान किये और जिन्होंने अभी तक नहीं किये, हर किसी के मन मे कहीँ न कहीँ कुछ धारणा या उलझने हो रही होगी कि क्या वो मोदी ज़ी को वोट देकर एक अछी सरकार कि चूनाव किया है या फ़िर करने जा रहे हैं? तो आइये आज उन उलझनों को दुर करते हैं....

नरेन्द्र दामोदरदास मोदी (गुजराती: નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી; जन्म: 17 सितम्बर, 1950) भारत के गुजरात राज्य केमुख्यमन्त्री हैं। वे भारतीय जनता पार्टी से सम्बद्ध हैं तथा 7 अक्तूबर 2001 से अब तक लगातार इस पद पर हैं। वे 2014 के लोकसभा चुनाव में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमन्त्री पद के प्रत्याशी घोषित किये गये हैं तथा वे वाराणसी तथा वडोदरा संसदीय क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद गुजरात के मुख्यमन्त्री बने थे। उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पहले दिसम्बर 2002, दिसम्बर 2007 और उसके बाद 2012 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों में बहुमत हासिल किया। बेहद साधारण परिवार में जन्में नरेन्द्र विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ कर अभी तक राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया फिर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा में लालकृष्ण आडवाणी के साथ रहे नरेन्द्र मोदी पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मन्त्री फिर महामन्त्री बनाये गये। केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद उन्हें गुजरात राज्य की कमान सौंपी गयी। तब से लेकर अब तक वे गुजरात के मुख्यमन्त्री बने हुए हैं।
गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। सर्च इंजन गूगल इण्डिया द्वारा 1 मार्च 2013 से 31 अगस्त 2013 के बीच कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार इण्टरनेट पर सर्च किये जाने वाले भारत के 10 प्रमुख राजनेताओं में नरेन्द्र मोदी पहले स्थान पर हैं। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर वाले भारतीय नेता हैं। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द इयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है।
इण्डिया टीवी को दिये गये अपने सबसे लम्बे साक्षात्कार में नरेन्‍द्र मोदी ने कहा कि अगर केन्द्र में भाजपा की सरकार बनती है तो देश का प्रत्येक व्यक्ति उन सभी वस्तुओं का हकदार होगा जिनके हकदार वह स्वयं हैं।
नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में 17 सितम्बर 1950 को हुआ था। वह पूर्णत: शाकाहारी हैं। भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध के दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की। युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए और साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया। किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वड़नगर में पूरी की। उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दी और एम॰एससी॰ की डिग्री प्राप्त की ।
अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया। बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र था लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी। इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी।
13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदाबेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उसका विवाह हुआ वह मात्र 17 वर्ष का था। फाइनेंसियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये। परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी। जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है:
"उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।"
पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती। हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।
प्रारम्भिक सक्रियता और राजनीति
नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ./ उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का आधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी।
अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी जब गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा जिसमें आडवाणी के प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इन दोनों यात्राओं ने मोदी का राजनीतिक कद ऊँचा कर दिया जिससे चिढ़कर शंकरसिंह वघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। जिसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा में संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया।
1995 में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वे अक्तूबर 2001 तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र भाई मोदी को सौंप दी।
गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में
नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिये समूचे राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं कोई भारी भरकम अमला नहीं होता। लेकिन कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इस नाते उन्हें अपने कामकाज को अमली जामा पहनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती। उन्होंने गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे। वे एक लोकप्रिय वक्ता हैं जिन्हें सुनने के लिये बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुँचते हैं। वे स्वयं को पण्डित जवाहरलाल नेहरू के मुकाबले सरदार वल्लभभाई पटेल का असली वारिस सिद्ध करने में रात दिन एक कर रहे हैं। धोती कुर्ता सदरी के अतिरिक्त वे कभी कभार सूट भी पहन लेते हैं। गुजराती, जो उनकी मातृभाषा है के अतिरिक्त वे राष्ट्रभाषा हिन्दी में ही बोलते हैं। अब तो उन्होंने अंग्रेजी में भी धाराप्रवाह बोलने की कला सीख ली है।
मोदी के नेतृत्व में 2012 में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। भाजपा को इस बार 115 सीटें मिलीं।
मोदी का वन बन्धु विकास कार्यक्रम
उपरोक्त विकास योजनाओं के अतिरिक्त मोदी ने आदिवासी व वनवासी क्षेत्र के विकास हेतु गुजरात राज्य में वनबन्धु विकास हेतु एक अन्य दस सूत्री कार्यक्रम भी चला रक्खा है जिसके सभी 10 सूत्र निम्नवत हैं:
1-पाँच लाख परिवारों को रोजगार, 2-उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता, 3-आर्थिक विकास, 4-स्वास्थ्य, 5-आवास, 6-साफ स्वच्छ पेय जल, 7-सिंचाई, 8-समग्र विद्युतीकरण, 9-प्रत्येक मौसम में सड़क मार्ग की उपलब्धता और 10-शहरी विकास।
श्यामजीकृष्ण वर्मा की अस्थियों का भारत में संरक्षण
नरेन्द्र मोदी ने प्रखर देशभक्त श्यामजी कृष्ण वर्मा व उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद 22 अगस्त 2003 को स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से स्वदेश वापस मँगाया और माण्डवी (श्यामजी के जन्म स्थान) में क्रान्ति-तीर्थ के नाम से एक पर्यटन स्थल बनाकर उसमें उनकी स्मृति को संरक्षण प्रदान किया। मोदी द्वारा 13 दिसम्बर 2010 को राष्ट्र को समर्पित इस क्रान्ति-तीर्थ को देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं। गुजरात सरकार का पर्यटन विभाग इसकी देखरेख करता है।
आतंकवाद पर मोदी के विचार
18 जुलाई 2006 को मोदी ने एक भाषण में आतंकवाद निरोधक अधिनियम जैसे आतंकवाद-विरोधी विधान लाने के विरूद्ध उनकी अनिच्छा को लेकर भारतीय प्रधानमंत्रीमनमोहन सिंह की आलोचना की। मुंबई की उपनगरीय रेलों में हुए बम विस्फोटों के मद्देनज़र उन्होंने केंद्र से राज्यों को सख्त कानून लागू करने के लिए सशक्त करने की माँग की। उनके शब्दों में -
"आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है। एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है।"
नरेंद्र मोदी ने कई अवसर पर कहा था कि यदि भाजपा केंद्र में सत्ता में आई, तो वह सन् 2004 में उच्चतम न्यायालय द्वारा अफज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने के निर्णय का सम्मान करेगी। भारत के उच्चतम न्यायालय ने अफज़ल को 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले के लिए दोषी ठहराया था एवं 9 फ़रवरी 2013 को तिहाड़ जेल में उसे लटकाया गया।
विवाद एवम् आलोचनाएँ
2002 के गुजरात दंगे
23 दिसम्बर 2007 की प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया के सवालों का उत्तर देते हुए मोदी
27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में एक हिंसक भीड़ द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यू यॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की। मोदी ने गुजरात की दसवीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमेंभारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की।
अप्रैल 2009 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं। यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था। दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस०आई०टी० की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
उसके बाद फरबरी 2011 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं[ और सबूतों के अभाव में नरेन्द्र मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता। इंडियन एक्सप्रेस ने भी यह लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने की बात भले ही की हो किन्तु अपराध से मुक्त तो नहीं किया। द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ़ इतनी भयंकर त्रासदी पर पानी फेरा अपितु प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न गुजरात के दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को भी उचित ठहराया। भारतीय जनता पार्टी ने माँग की कि एस०आई०टी० की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ काँग्रेस पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ है इसकी भी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट ने बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जाँच करके अबिलम्ब अपना निर्णय देने को कहा। अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं। 7 मई 2012 को उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए (1) (क) व (ख), 153 बी (1), 166 तथा 505 (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है। हालँकि रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर विशेष जाँच दल (एस०आई०टी०) ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया।
अभी हाल ही में 26 जुलाई 2012 को नई दुनिया के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिये गये एक इण्टरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने साफ कहा-"2004 में मैं पहले भी कह चुका हूँ, '2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी माँगूँ?' यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फाँसी दे देनी चाहिये।" मुख्यमन्त्री ने गुरुवार को नई दुनिया से फिर कहा- “अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फाँसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जबाव नहीं है।"
यह कोई पहली बार नहीं है जब मोदी ने अपने बचाव में ऐसा कहा हो। वे इसके पहले भी ये तर्क देते रहे हैं कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले एक दशक में गुजरात ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुँचा है।
लेकिन जब केन्द्रीय क़ानून मन्त्री सलमान खुर्शीद से इस बावत पूछा गया तो उन्होंने दो टूक जबाव दिया-"पिछले बारह वर्षों में यदि एक बार भी गुजरात के मुख्यमन्त्री के खिलाफ़ एफ०आई०आर० दर्ज़ नहीं हुई तो आप उन्हें कैसे अपराधी ठहरा सकते हैं? उन्हें कौन फाँसी देने जा रहा है?"
बाबरी मस्ज़िद के लिये पिछले 54 सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे 92 वर्षीय मोहम्मद हाशिम अंसारी के मुताबिक भाजपा में प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के प्रान्त गुजरात में सभी मुसलमान खुशहाल और समृद्ध हैं। जबकि इसके उलट कांग्रेस हमेशा मुस्लिमों में मोदी का भय पैदा करती रहती है।
दोस्तों यदि आप सहमत हैं तो एक प्रतिक्रीया चाहूंगा। 


http://hi.wikipedia.org/s/af
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

Thursday 24 April 2014

ग़ज़ल

फ़साना अपने प्यार का सुनाये जा  रहा हूँ मैं 
हस्र  दिल  की दिल  में  दबाये  जा  रहा  हूँ  मैं 
जिंदगी  बोझ  बन  गयी  है  अब  मेरी  खातिर 
फिर  भी  यूहीं   चुपचाप  जीये जा  रहा  हूँ  मैं 
डर  सा  लगता  है अब चिराग-ए-रौशनी में मुझे 
अपने  ही  दिए  अपने हाथों बुझाए जा रहा हूँ मैं 
देखना  नहीं  चाहती  ये  जहाँ  मुझे  रूबरू अपने 
तब भी नज़र से नज़र उसके मिलाये जा रहा हूँ मैं 
धड़कने तो कबका छोड़ चुकी दिल-ए-चौहान का साथ 
बस जिन्दा रहकर दिल का जनाज़ा ढोये जा रहा हूँ मैं 
क्या मांगू  तुझसे  या रब,  क्या नहीं  है  मेरे पास 
दर्द-ए-दिल तन्हां सफर, सबकुछ संजोये जा रहा हूँ मैं 

-धीरज चौहान 

Tuesday 15 April 2014

दम तोड़ते रिश्ते

इसे लम्हों की गुस्ताखी कहें
या फिर ज़माने की जिद्द 
कुछ ख़ाब अधूरे रह जाते हैं 
कुछ बातें होठों में दबी राज़ 
कहीं वक़्त शिकायतें छोड़ जाता है 
तो कहीं शिकायतों में 
वक़्त सिमट कर ख़त्म हो जाता है 

है यह भावनाओ की ब्यस्तता 
या फिर यही है जीने के सलीक़े 
कोई रोता है अपनों के लिए 
किसी को अपनों से उब्ब है 
कोई रिश्तों में बंधना 
घुट्टन समझता है 
तो कहीं रिश्ते दम तोड़ रहे हैं 
किसी के इंतज़ार में 

बोझल हुए जाते हैं आँखे 
या फिर उम्र की सीढियाँ चढ़ते-चढ़ते 
पलके भी बूढी हो गयी हैं 
फिर भी दूर कहीं सन्नाटे में 
उम्मीदें गुनगुना रही हैं 
लड़खड़ाते जुबां इन मांसल दीवारों से 
बाहर निकलने को बेताब हो रही हैं 
हमसे ये कहने को 
क्यों इच्छाएं बूढी नहीं होती।। 

-धीरज चौहान 

मरने से पहले

मरने से पहले 
घूमना चाहेंगे एक बार फिर 
अपने गावों की 
उन तंग गलियों में 
जिसमे हमारे बचपन की 
रेलें चला करती थी 
उतारना चाहेंगे फिर अपनी कस्ती 
खेतों के क्यारियों में 
और डगमगाना चाहेंगे 
उन पगडंडियों पर 
जिसके निचे 
गीली मिट्टी की 
चादरें बिछी होती थी 
मिलना चाहेंगे वहां 
अपने बचपन के मित्रों से 
जो पढाई और पैसों के अभाव में 
मज़दूर बन गए 
तो कुछ ने हथियार उठा ली 
एक सन्देश देना चाहेंगे 
भाईचारा, सदभावना और प्रेम का 
मरने से पहले ।। 

-धीरज चौहान 

Friday 4 April 2014

तीर्थयात्रा

तीर्थयात्रा


           जिंदगी अठानवे पायदान पार कर चुकी है। इन अठानवे वर्षों में मैंने कई उतार चढ़ाव देखें, कई खौफ कई ख़ुशी देखे। कई जिंदगियां बनते देखा तो कई ख़त्म होते। पर कभी दूसरों के बारे में सोचने का वक़्त नहीं निकाल पाया। कभी ये नहीं सोचा की मेरे अकेले इतने रख लेने से किसी दूसरे का कम भी हो सकता है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो स्वार्थी था मैं। कभी किसी को देना नहीं सिखा। हाँ, अगर कहीं कुछ मिल रहा हो तो सबसे आगे। 
           बाबू हमेशा कहते "दिनकर, दुसरो के लिए भी सोचा कर। गरीबो के कष्टों को समझा कर, हो सके तो उनकी मदद कर। शौभाग्य प्राप्त होगा। ईश्वर की दया से सब कुछ तो है तेरे पास। भइया की इतनी जायदाद, इतनी धन दौलत, ये सब ले कर जायेगा क्या?"
           मैं तब दस साल का था जब मेरे पिताजी गुजर गए और उनके गुजरने के ठीक इग्यारह महीने बाद माँ भी छोड़ गयी। मेरे दादा जी दो भाई थे। दोनों के हिस्से में अच्छी-खासी जमीन जायदाद आया था। छोटे दादा जी कुछ ज्यादा ही शौक़ीन थे। उस वक़्त गाव में बिजली न थी। फिर भी वो रेडिओ और रिकाट सारा दिन सुनते। चाहे इसके लिए उन्हें कितना भी खर्च क्यों न करना पड़े। और इन्हीं शौक में अपनी लगभग जायदाद बेच डाली।और अपने बेटे बाबू के लिए मात्र छः बीघे जमीं ही छोड़ गए। मेरे दादा जी ठीक उनके उल्टा थे। वो सारी जिंदगी बस जमा करना सीखे। और मेरे पिताजी भी कुछ इसी तरह के थे। 
          बाबू दिल के एकदम साफ इंसान थे। उम्र में वो मुझसे सत्रह साल बड़े थे पर पिताजी से छोटे होने के कारण घर में सब उन्हें बाबू ही बुलाते और उसी सुना-सुनी में मैं भी उन्हें बाबू ही कहने लगा। उनके मन में कभी नहीं रहा कि मेरे पिताजी के पास इतना जायदाद है और उनके पास मात्र छः बीघे जमीन। शायद वो जानते थे कि किसी को कुछ मिलता है तो वह उसकी किस्मत से। वो कहते थे.. "किस्मत कभी किसी को धोखा नहीं देती, बस अपनी किस्मत पर भरोसा रखो, सारे काम तुम खुद सही तरीके से कर लोगे। और इसी का श्रेय तुम्हारी किस्मत को जायेगा। 
          मेरे पिताजी की एक दुकान थी।  जब वो नहीं रहे तो दुकान सँभालने की जिम्मेदारी बाबू ने ली। मेरी परवरिस से लेकर पढाई तक का भार उन्होंने बिना उफ़ किये उठाया। बारहवीं पूरी होते ही दुकान की चाबी वो मेरे हाथों में दे दिए। 
          उनकी बेटी जानकी, जिसकी शादी तेरह साल की उम्र में ही कर दी उन्होंने। ये सोच कर कि ज्यादा बड़ी हो गई तो दहेज़ ज्यादा देना पड़ेगा। और बाकि का जीवन दो बैल और छः बीघे जमीन के हवाले कर दी। मुझे यह कहते हुए कि जिंदगी जब कभी किसी गैर के बारे में सोचने का मौका दे, जरूर सोचना।
          आज बाबू की वही बात सच लगने लगा था। मेरे दो बेटे हैं। दोनों आत्मनिर्भर हो गए। ढ़ेर सारी डिग्रीयां हासिल कर बिलायत जा बसे हैं दोनों। कहने को तो मेरे आँखों के तारे हैं वो, पर तारों की तरह इन बूढी आँखों से दूर भी हैं। 
          धन जमा करने की लालच ने मेरी जिंदगी को मुझसे कोसो दूर कर दिया है। अब हालात ऐसे हैं कि जीने के लिए धन तो बेसुमार हैं पर जिंदगी के पल कम। सोचा अमरनाथ की यात्रा कर लूँ, शायद थोड़े और दिनों के लिए अमर हो जाउंगा। पर आये दिन अख़बार में पढता था... "फलां तीर्थ स्थान पर आतंकियों का हमला।" ये सोच मरने से भी डरता था। लेकिन सौ साल से अधिक कौन जीता है। ये सोच कर कि मरने से पहले एक बार हो आऊँ। और अमरनाथ यात्रा पर निकल पड़ा। पर वही हुआ जिसके लिए मन में डर था। 
          उस भिसन तबाही में होने वाले घायलों की सूचि में मैं भी सामिल था। आज सातवां दिन बीत चूका है, पर मेरे दोनों बेटों में से किसी को फुर्सत नहीं है मुझसे मिलने की। आज लग रहा है कि दुनियां का सबसे गरीब इंसान अगर कोई है तो वो मैं हूँ। 

-धीरज चौहान 
           

Tuesday 1 April 2014

The Best Friend

         हर सुबह की तरह आज भी अलार्म बजने से पहले मेरी नींद खुल गई। क्योंकि मेरे लिए अलार्म का काम वो औरतें कर देती हैं जो खिड़की से सटे आम के पेड़ से गिरे हुए सूखे पत्ते बिछने आती हैं। उनके झाड़ू की लगातार खड़-खड़ मुझे बिस्तर छोड़ने को मजबूर कर देती है। उनके लिए खाना पकाने का यही एक साधन है। बरसात और जाड़े में उनके झाड़ू का काम खत्म हो जाता है। पर वो आती जरुर हैं। चाहे दो-चार ही लकड़ियां  क्यों न मिले पर इस बगीचे से कुछ न कुछ ले कर ही जाती है। 11 बजते-बजते सभी औरतें अपने-अपने घर को चली जाती हैं। पर इतने समय तक वो सायद ही कुछ खाती होंगी। क्योंकि जब तक वो बगीचे में दिखायी देती हैं उनके मुँह में एक दातुन लटक रहा होता है। 
         मैंने आँखे खोली और इश्वर को धन्यवाद दिया फिर एक नयी सुबह दिखाने के लिए। खिड़की के बाहर देखा तो एक बुढ़िया पते बिटोर रही थी। और वो गाय अभी तक आयी नहीं थी जो रोज इस वक़्त आ जाया करती थी अपनी हक़ की वो रोटी लेने जो रात को खाना खाने से पहले मैं खिड़की पर रख देता था। सोचा कभी आएगी तो खा लेगी मैंने रोटी खिड़की से निचे गिरा दी। पर लगता है आज उस रोटी की ज्यादा जरुरत उस बुढ़िया को थी जो पत्ते बिटोरत-बिटोरते खिड़की के करीब आयी और वो रोटी उठा कर अपनी साड़ी के एक कोने में बांध ली।
         कहते हैं इंसान की जरुरत ही उसके हैसियत के पन्ने खोल देती है। आज एक रोटी ने पल भर में उस बुढ़िया का पूरा वर्तमान दिखा दिया। मैंने डब्बे से कुछ बिस्कुट निकाले और उसे देते हुए कहा .... "वो रोटी गाय के लिए छोड़ दीजिये।"
         मुझे लगा उसे कुछ लज्जा होगी की मैंने उसकी चोरी पकड़ ली, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उसके चेहरे पर इस बात की कोई मलाल न था। उसने मेरे हाथों से बिस्कुट लिए और मैथिलि में ही कुछ ऐसा कह गई जिसकी मैंने कभी कल्पना भी न किया था.... "उ सब पत्तो खा लेई छै बउआ, बुढ़वा अखन तक किछ नै खैल हेतै।" (गाय तो पत्ते भी खा लेंगी, लेकिन बूढ़ा (उसका पति ) अभी तक कुछ नहीं खाया होगा )।

*   दोस्तों सुख में या दुःख में अगर कोई जिंदगी भर आपका साथ देगी तो वो है आपकी पत्नी। 
इसलिए जो स्थान आपकी पत्नी की है वो कभी किसी को ना दें। आपके बच्चे एक दिन आपसे घृणित हो सकते हैं पर यकीन मानिये आपकी पत्नी  बुरे से बुरे वक़्त में भी आपके साथ रहेगी।

-धीरज चौहान