ग़ज़ल
ज़ुबां पे कल की बात तो आने दीजिये
इन हाथों में अपना हाँथ तो आने दीजिये
निगाहें तो कबके ढूंढ़ चुकी है मंजिल अपनी
हमसफ़र के लिए अपना साथ तो आने दीजिये
बातों ही बातों में निकल आयेंगें किस्से इश्क के
इन खामोश होठों पे कोई राज तो आने दीजिये
कैसे लड़खड़ाने लगे आप जब साथ हम हैं
पहले ही थाम लेंगे गिरने के हालात तो आने दीजिये
आप डरते ही हैं फिजूल इन अंधेरों से
सितारे रह दिखायेंगे पहले रात तो आने दीजिये
कर लेंगे ''चौहान'' पर यकीं जब दिल की बात होगी
बस कहने का कोई हुन्नर याद तो आने दीजिये