Friday 7 March 2014

क्यों न मुझे बेपनाह प्यार हो ....

है किसी की अक्श 
धुंधली सी मेरे खाबों में 
जिसकी तलाश में 
ये झुकी पलकें हैं  

है उसकी आहट 
कुछ इस कदर यादों में 
कि तन्हाइयों में भी 
अपनी सदा 
कभी दे जाती है 

नाम भी दे दूँ 
गर किसी लम्हा 
उसका दीदार हो 

बाहें फैला दूँ 
गर किसी वादों में 
उसके आने का इक़रार हो 

है कौन वो 
क्या पता !
है कहाँ वो 
क्या खबर !
फिर भी हर पल 
अपने करीब पता हूँ उसे 
तो क्यों न मुझे 
बेपनाह उससे प्यार हो ....