Monday 10 February 2014

मेरी कमी (Poem)

मेरी कमी 

ये हवाएं आज भी
तेरे रू-ब-रु होकर
मज़ाक करती है कभी
तेरा पल्लू उड़ाकर
ठिक उसी तरह
जब वो झूला करते थे
कभी मेरे चेहरे पे
और तंग करते थे मुझे,

पर आज लम्हों ने
कुछ इस तरह बदला है,
कि वही तुम हो
कि वही हवाएं हैं
कि वही फ़िज़ायें हैं
वही घटायें हैं
बस कमी है तो
उन उड़ते पाल्लुओं के निचे
मेरे चेहरे कि.…