निशां
क्यों रुकी रुकी है जिंदगी
एक हमसफ़र के लिए
उम्र के उस पायदान पर
जहाँ से वर्षो पहले
उनकी कदम मुड़ चुकी थी
अपने उस आसियाने की ओर
जहाँ से चले थे वो
कसमों को न तोड़ने वाली कसम लेकर
और साथ मेरा हाथ थामकर
क्यों झुकी झुकी है ये पलके
कई उम्मीद
और कई ऐतबार के साथ
उन वादों के लिए
जो शायद ही पुरे होंगे …
क्यों फैली है ये बाहें
एक इंतज़ार में
वक़्त के ठहराव पे
उन नामुमकिन सपनों के साथ
जिसके मुमकीन की
ना कोई सार
ना कोई निशां है।