Tuesday 15 April 2014

मरने से पहले

मरने से पहले 
घूमना चाहेंगे एक बार फिर 
अपने गावों की 
उन तंग गलियों में 
जिसमे हमारे बचपन की 
रेलें चला करती थी 
उतारना चाहेंगे फिर अपनी कस्ती 
खेतों के क्यारियों में 
और डगमगाना चाहेंगे 
उन पगडंडियों पर 
जिसके निचे 
गीली मिट्टी की 
चादरें बिछी होती थी 
मिलना चाहेंगे वहां 
अपने बचपन के मित्रों से 
जो पढाई और पैसों के अभाव में 
मज़दूर बन गए 
तो कुछ ने हथियार उठा ली 
एक सन्देश देना चाहेंगे 
भाईचारा, सदभावना और प्रेम का 
मरने से पहले ।। 

-धीरज चौहान