मरने से पहले
घूमना चाहेंगे एक बार फिर
अपने गावों की
उन तंग गलियों में
जिसमे हमारे बचपन की
रेलें चला करती थी
उतारना चाहेंगे फिर अपनी कस्ती
खेतों के क्यारियों में
और डगमगाना चाहेंगे
उन पगडंडियों पर
जिसके निचे
गीली मिट्टी की
चादरें बिछी होती थी
मिलना चाहेंगे वहां
अपने बचपन के मित्रों से
जो पढाई और पैसों के अभाव में
मज़दूर बन गए
तो कुछ ने हथियार उठा ली
एक सन्देश देना चाहेंगे
भाईचारा, सदभावना और प्रेम का
मरने से पहले ।।
-धीरज चौहान
घूमना चाहेंगे एक बार फिर
अपने गावों की
उन तंग गलियों में
जिसमे हमारे बचपन की
रेलें चला करती थी
उतारना चाहेंगे फिर अपनी कस्ती
खेतों के क्यारियों में
और डगमगाना चाहेंगे
उन पगडंडियों पर
जिसके निचे
गीली मिट्टी की
चादरें बिछी होती थी
मिलना चाहेंगे वहां
अपने बचपन के मित्रों से
जो पढाई और पैसों के अभाव में
मज़दूर बन गए
तो कुछ ने हथियार उठा ली
एक सन्देश देना चाहेंगे
भाईचारा, सदभावना और प्रेम का
मरने से पहले ।।
-धीरज चौहान