फ़साना अपने प्यार का सुनाये जा रहा हूँ मैं
हस्र दिल की दिल में दबाये जा रहा हूँ मैं
जिंदगी बोझ बन गयी है अब मेरी खातिर
फिर भी यूहीं चुपचाप जीये जा रहा हूँ मैं
डर सा लगता है अब चिराग-ए-रौशनी में मुझे
अपने ही दिए अपने हाथों बुझाए जा रहा हूँ मैं
देखना नहीं चाहती ये जहाँ मुझे रूबरू अपने
तब भी नज़र से नज़र उसके मिलाये जा रहा हूँ मैं
धड़कने तो कबका छोड़ चुकी दिल-ए-चौहान का साथ
बस जिन्दा रहकर दिल का जनाज़ा ढोये जा रहा हूँ मैं
क्या मांगू तुझसे या रब, क्या नहीं है मेरे पास
दर्द-ए-दिल तन्हां सफर, सबकुछ संजोये जा रहा हूँ मैं
-धीरज चौहान
हस्र दिल की दिल में दबाये जा रहा हूँ मैं
जिंदगी बोझ बन गयी है अब मेरी खातिर
फिर भी यूहीं चुपचाप जीये जा रहा हूँ मैं
डर सा लगता है अब चिराग-ए-रौशनी में मुझे
अपने ही दिए अपने हाथों बुझाए जा रहा हूँ मैं
देखना नहीं चाहती ये जहाँ मुझे रूबरू अपने
तब भी नज़र से नज़र उसके मिलाये जा रहा हूँ मैं
धड़कने तो कबका छोड़ चुकी दिल-ए-चौहान का साथ
बस जिन्दा रहकर दिल का जनाज़ा ढोये जा रहा हूँ मैं
क्या मांगू तुझसे या रब, क्या नहीं है मेरे पास
दर्द-ए-दिल तन्हां सफर, सबकुछ संजोये जा रहा हूँ मैं
-धीरज चौहान