Thursday 24 April 2014

ग़ज़ल

फ़साना अपने प्यार का सुनाये जा  रहा हूँ मैं 
हस्र  दिल  की दिल  में  दबाये  जा  रहा  हूँ  मैं 
जिंदगी  बोझ  बन  गयी  है  अब  मेरी  खातिर 
फिर  भी  यूहीं   चुपचाप  जीये जा  रहा  हूँ  मैं 
डर  सा  लगता  है अब चिराग-ए-रौशनी में मुझे 
अपने  ही  दिए  अपने हाथों बुझाए जा रहा हूँ मैं 
देखना  नहीं  चाहती  ये  जहाँ  मुझे  रूबरू अपने 
तब भी नज़र से नज़र उसके मिलाये जा रहा हूँ मैं 
धड़कने तो कबका छोड़ चुकी दिल-ए-चौहान का साथ 
बस जिन्दा रहकर दिल का जनाज़ा ढोये जा रहा हूँ मैं 
क्या मांगू  तुझसे  या रब,  क्या नहीं  है  मेरे पास 
दर्द-ए-दिल तन्हां सफर, सबकुछ संजोये जा रहा हूँ मैं 

-धीरज चौहान