Monday 21 January 2013

आतंक (Poem)

आतंक 

कुछ तो है
जिसे पाने की
एक होड़ है,

कुछ तो है
जिसे हासिल करने की 
प्रयास है निरंतर ,
नहीं देखा है कोई 
की वो कैसा है?
और है क्या वो,
सायद ये भी नहीं 
जनता कोई,
फिर भी एक चाह है 
एक तमन्ना है 
उसे पा लेने की,
कुछ तो है 
एक दिवार के 
उस पार 
जिस तरफ से एक मौन हुई 
सद्दा पुकार रही है 
हर किसी को हर शय,
है कितना सही 
ये किसी को पता नहीं , 
है कितना गलत 
ये  सब जानते हैं,
क्यों की ये आतंक है 
इसमें सब पिलते हैं।।



-- धीरज चौहान ''धैर्य'"