....तो तुम मिले (Poem)
....तो तुम मिले।
राह-ए-जिन्दगी में
यूँ अकेले ही चले थे,
तब तलाश थी
एक हमसफ़र की
....तो तुम मिले।
डूबता ही जा रहा था
ये दिल
अपनों की चाहत में ,
जब धडकनों ने किया याद
एक अजनबी को
....तो तुम मिले।
न ख़त्म हो
सिलसिला खाबों का ,
जो इस उम्मीद के साथ
सपनों ने
एक करवट ली
....तो तुम मिले।